-
शिल्प संग्रहालय, नई दिल्ली - विकिपीडिया
शिल्प संग्रहालय, जिसका औपचारिक नाम राष्ट्रीय हस्तशिल्प एवं हथकरघा संग्रहालय है, नई दिल्ली में पुराना किला के सामने भैरों मार्ग पर प्रगति मैदान परिसर में स्थित है।[2] यह दिल्ली के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। यहाँ के वरिष्ठ निदेशक श्री सोहन कुमार झा हैं।[3] यह संग्रहालय लगभग
https://hi.wikipedia.org/wiki/शिल्प_संग्रहालय,_नई_दिल्ली
-
शिल्प · संघ(मजदूर संघ) (कार्य और श्रम मुद्दे) - Mimir विश्वकोश
एक श्रम संघ जिसे एक पेशेवर संघ, नौकरी वर्गीकृत संघ, एक कार्यात्मक संघ संघ, आदि के रूप में अनुवादित किया जाता है और उसी नौकरी श्रेणी / समारोह के कार्यकर्ता उद्यम में व्यवस्थित होते हैं। प्रारंभिक श्रम संघ...
https://mimirbook.com/hi/cbc93c65830
-
हाथकरघा एवं हस्तशिल्प
हाथकरघा क्षेत्र में बुनकर सहकारी समितियों, स्व-सहायता समूहों, उद्यमियों, व्यक्तिगत बुनकरों एवं अशासकीय संस्थाओं के बुनकरों/शिल्पियों को आत्मनिर्भर बनाना, ग्रामोद्योग उत्पादों को बाजार योग्य बनाने हेतु तकनीकी, विपणन एवं कार्यशील पूँजी हेतु सहायता प्रदान करना। बुनकर सहकारी समितियों
http://mpgramodyogglobal.gov.in/RuralIndu/DEP201/Schemes.aspx
-
साहित्य, कला और हस्तशिल्प
हस्तशिल्प हाथ के कौशल से तैयार किए गए रचनात्मक उत्पाद हैं जिनके लिए किसी आधुनिक मशीनरी और उपकरणों की मदद नहीं ली जाती। आजकल हस्त-निर्मित उत्पादों को फैशन और विलासिता की वस्तु माना जाता है।
https://knowindia.gov.in/hindi/culture-and-heritage/handicrafts.php
-
रघुवीर सहाय के गद्य में सामाजिक चेतना
रघुवीर सहाय का इतना प्रबल गद्य साहित्य उपलब्ध होते हुए भी उनके व्यक्तित्व को सदा एक कवि के नज़रिए देखा, समझा व आँका गया है। उनकी कविताओं पर तो आलोचकों का खूब ध्यान गया है, उनकी समुचित आलोचनात्मक व्याख्या भी हुई है परंतु वह गद्य, जो उनकी कविता से कहीं आगे जाता है, कुछ हद तक उपेक्षित सा प्रतीत होता है। बहुमुखी विकास और समानता के अवसर की राह दिखाने वाले उनके गद्य पर गंभीर कार्य का अभाव दृष्टिगोचर होता है। गद्य की समस्त विधाओं में उनका साहित्य उपलब्ध होने के कारण यह कार्य चुनौती भरा अवश्य है किंतु असंभव नहीं। शोध कार्यों का अनुसंधान करने से यह ज्ञात हुआ कि अधिकांश शोधार्थियों ने उनकी काव्य रचना पर ही अधिक कार्य किया है। इसलिए मैंने अपने शोध का विषय ‘रघुवीर सहाय के गद्य में सामाजिक चेतना’ का चयन किया जिससे मैं मौलिक शोध कार्य कर सकूँ। अपने शोध कार्य को अध्ययन की सुविधा के लिए मैंने छ: अध्यायों में विभाजित किया है। प्रथम अध्याय में ‘सामाजिक चेतना और गद्य साहित्य’ के अंतर्गत सामाजिक चेतना का अर्थ और स्वरूप बताते हुए सामाजिक चेतना के विविध रूपों का विश्लेषण किया गया है। सामाजिक चेतना और हिंदी गद्य साहित्य, सामाजिक चेतना और गद्य के विविध रूप का अध्ययन करते हुए सामाजिक चेतना की महत्ता का विवेचन किया गया है। द्वितीय अध्याय के अंतर्गत ‘रघुवीर सहाय के व्यक्तित्व और कृतित्व’ का मूल्यांकन करते हुए रघुवीर सहाय की रचनादृष्टि पर प्रकाश डाला गया है। तृतीय अध्याय में ‘रघुवीर सहाय के गद्य में सामाजिक चेतना’ के अंतर्गत उनके कथा साहित्य में बदलते जीवन मूल्य, पथभ्रष्ट युवा वर्ग, शिक्षा के स्तर पर भ्रष्टाचार, अनैतिक संबध, भाषा की समस्या तथा नारी जीवन की समस्याओं का विवेचन किया गया है। इसके साथ ही रघुवीर सहाय के कथेतर गद्य के अंतर्गत उनके वैचारिक और ललित निबंधों तथा बाल साहित्य एवं अन्य साहित्य में सामाजिक चेतना का विवेचन किया गया है। चतुर्थ अध्याय में ‘रघुवीर सहाय के गद्य में राजनीतिक चेतना’ के अंतर्गत कथा साहित्य और राजनीति, शासन व्यवस्था, शोषक और शोषित, स्वतंत्रता प्राप्ति और मोहभंग, लोकतंत्र, नौकरशाही, नेताओं की पदलोलुपता, वोटों की राजनीति, भ्रष्टाचार, आपात्काल की स्थिति, पुलिस प्रशासन की वास्तविकता, मीडिया की असलियत का विवेचन रघुवीर सहाय के साहित्य के संदर्भ में किया गया है। इसके अतिरिक्त रघुवीर सहाय के कथेतर गद्य में भी राजनीतिक चेतना का विश्लेषण किया गया है। पंचम अध्याय के अंतर्गत ‘रघुवीर सहाय के गद्य में आर्थिक चेतना’ का स्वरूप बताते हुए, युगीन आर्थिक परिस्थितियाँ, मानव जीवन में अर्थ की महत्ता, रघुवीर सहाय का आर्थिक दृष्टिकोण, एवं उनके कथा साहित्य में उच्च, मध्य और निम्न वर्ग की स्थिति का अध्ययन किया गया है। इसी अध्याय में रघुवीर सहाय के वैचारिक निबंधों और ललित निबंधों एवं बाल साहित्य और अन्य साहित्य में आर्थिक चेतना को रेखांकित किया गया है। षष्ठम अध्याय में ‘रघुवीर सहाय के गद्य में धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना’ के अंतर्गत धर्म और संस्कृति, रघुवीर सहाय के कथा साहित्य में धार्मिक और सांस्कृतिक तत्त्वों का स्वरूप, उनका उत्थान और पतन, कथा साहित्य और कथेतर साहित्य में क्रमश: विवेचित किया गया है। सभी अध्यायों के अंत में निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए शोध प्रबंध के अंत में उपसंहार के अंतर्गत समस्त शोध का सार प्रस्तुत करते हुए महत्त्वपूर्ण निष्कर्षों एवं रघुवीर सहाय की उपलब्धियों एवं सीमाओं का मूल्यांकन किया गया है। अंत में परिशिष्ट के अंतर्गत संदर्भ ग्रंथ सूची, आधार ग्रंथ, सहायक ग्रंथ, कोश एवं पत्र-पत्रिकाओं की सूची प्रस्तुत की गई है।
https://books.google.co.in/books?id=2lJKDwAAQBAJ&pg=PT30&lpg=PT30&dq=शिल्प+संघ+एवं+समूह&source=bl&ots=rtvJ2Iuvan&sig=ACfU3U35egPUilrqoe
-
शहरों में निखारे जाएंगे जनजातीय शिल्प
रेणुकूट (सोनभद्र) : 'जनजाति शिल्पकार मेला' में दुरुह क्षेत्र के ग्रामीण आदिवासियों के हाथों से निर्मित सामानों की प्रदर्शनी मंगलवार को रेणुकूट में लगाई गई। इसका मुख्य उद्देश्य जनज
https://www.jagran.com/uttar-pradesh/sonbhadra-9121179.html
-
प्रागैतिहासिक भारत में व्यापार एवं शिल्पकार-संगठन | आखरमाला
इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि सभ्यता के लंबे विकास-क्रम में व्यापार निरंतर तरक्की करता जा रहा था. लोगों की आवश्यकताएं भी बढ़ रही थीं. इसलिए यह संभव नहीं रह गया था कि एक ही स्थान पर मनुष्य की जरूरत की समस्त वस्तुओं का उत्पादन संभव हो सके. कच्चे माल एवं दक्ष शिल्पकारों की…
https://omprakashkashyap.wordpress.com/2009/08/22/प्रागैतिहासिक-भारत-में-व/
-
कला और शिल्प आंदोलन – HiSoUR कला संस्कृति का इतिहास
कला और शिल्प आंदोलन, सजावटी और ललित कलाओं में एक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन था, जो कि ब्रिटेन में शुरू हुआ और यूरोप और उत्तरी अमेरिका में लगभग 1880 और 1 9 20 के बीच विकसित हुआ, जो 1 9 20 के दशक में जापान…
https://www.hisour.com/hi/arts-and-crafts-movement-27667/
-
ग्रामीण शिल्पकला एवं अभियांत्रिकी
1) विज्ञान व प्रौद्योगिकी सहायता से तथा वैज्ञानिकों ,तकनीकी और प्रबंधन विशेषज्ञों के साथ निकटतम समंवय साध्य करते हुए, ग्रामीण शिल्पकारों के कौशल,सॄजनात्मकता एवं उत्पाद में वृद्धि करना तथा उनके उत्पादों का मूल्यवर्धन व उच्च गुणवत्ता के स्तर को कायम रखना
https://www.mgiri.org/ग्रामीण-शिल्पकला-एवं-अभि/
-
भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत के अमूर्त पहलू : मामला अध्ययन – योग
भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत के अमूर्त पहलू : मामला अध्ययन – योग
https://mea.gov.in/in-focus-article-hi.htm?24453/Intangible+aspects+of+Indias+spiritual+and+religious+heritage++Case+study+Yoga