छत्तीसगढ़ की शिल्पकला - छत्तीसगढ़ ज्ञान
छत्तीसगढ़ की शिल्पकला
1. मिट्टी शिल्प
राज्य में बस्तर का मिट्टी शिल्प अपनी विशेष पहचान रखता है।
रायगढ़, सरगुजा, राजनांदगांव आदि क मिट्टी शिल्प अपनी अपनी निजी विशेषताओं के कारण महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
सरगुजा में लखनपुर के पास सोनाबाई ने मिट्टी शिल्प का सुंदर संसार रच रखा है।
केंद्र : नगरनार, नारायणपुर, कुम्हारपुरा( कोंडागांव ), एडका।
2. काष्ठ शिल्प
बस्तर का काष्ठ शिल्प विश्व प्रसिद्ध है। यहां के मुड़िया जनजाति का युवागृह घोटुल का श्रृंगार, खंभे, मूर्तियां, देवी झूले, कलात्मक मृतक स्तंभ, तीर-धनुष, कुल्हाड़ी आदि पर सुंदर बेलबूटों के साथ पशु पक्षियों की आकृतियां आदि इसके उत्कृष्ठ उदाहरण है।
छत्तीसगढ़ में कोरकू जनजाति के मृतक स्तंभ, मुरिया जनजाति के युवागृह का श्रंृगार, सरगुजा की अनगढ़ मूर्तियां एवं रायगढ़ के शिल्पकारों के कार्य छत्तीसगढ़ में काष्ठ शिल्प के उत्कृष्ठ उदाहरण है।
जगदलपुर के मानव संग्रहालय में बस्तर के जनजातियां की काष्ठ कलाकृतियों की बारीकियां आश्चर्य मं डालने वाली है।
के.पी. मंडल (बस्तर) - काष्ठ कला।
3. बांस शिल्प
बस्तर, रायगढ़, सरगुजा में बांस शिल्प के अनेक परंपरागत कलाकार है।
विशेष रूप से बस्तर जिले की जनजातियों में बांस की बनी कलात्मक चीजों का स्वयं अपने हाथों से निर्माण करते हैं।
कमार जनजाति बांस के कार्यों के लिए विशेष प्रसिद्ध हैं
बांस कला केन्द्र -बस्तर में है।
4. पत्ता शिल्प
पत्ता शिल्प के कलाकार मूलतः झाडू बनाने वाले होते हैं।
पत्तों से अनेक कलात्मक और उपयोगी वस्तुएं बनायी जाती है।
सरगुजा, रायगढ़, बस्तर, राजनांदगांव, में ये शिल्प देखने को मिलता है।
पनारा जाति के लोग छींद के पत्तों का कलात्मक उपयोग करते हैं।
5. कंघी कला
जनजाति जीवन में कंघिया सौन्दर्य एवं प्रेम का प्रतीक मानी गई है।
बस्तर में कंघी प्रेम विशेष उल्लेखनीय है।छत्तीसगढ़ की मुरिया जनजाति कंघियों में घड़ाइ्र के सुंदर अंलकरण के साथ ही रत्नों की जड़ाई एवं मीनाकरी करने में सिद्ध हस्त है।
राज्य मं कंघी बनाने का श्रेय बंजारा जाति को दिया गया है।
6. धातु कला
छत्तीसगढ़ में धातुओं को शिल्प कला में परिवर्तित करने का कार्य बस्तर की घड़वा जाति, सरगुजा की मलार, कसेर, भरेवा जाति तथा रायगढ़ की झारा जाति करती है।
सरगुजा की तीनों जातियांे में मलार जाति के लोग श्रेष्ठ कारीगर माने जाते हैं।
मलार जाति का व्यवसायिक देव लोहा झाड़ है।
छत्तीसगढ़ का यह जनजातीय जीवन धातु मूर्ति कला के क्षेत्र में प्रख्यात है।
7. घड़वा कला
धातुओं (पीतल, कांसा) और मोम को ढालकर विभिन्न वस्तुओं, आकृतियों को गढ़ने की घड़वाकला छत्तीसगढ़ में पर्याप्त रूप से प्रचलित रही।
बस्तर की घड़वाजाति का तो नाम ही इस व्यवसाय के कारण घड़वा है। जो घड़वा शिल्प कला में प्रसिद्ध है।
बस्तर की प्रमुख शिल्पकार कसेर जाति के लोग अपनी परंपरागत कलात्मक सौंदर्य भाव के लिये ख्याति लब्ध है।
घड़वा शिल्प के अंतर्गत देवी व पशु-पक्षी की आकृतियां तथा त्यौहारों में उपयोग आने वाले वाद्य सामग्री तथा अन्य घरेलू उपयोग वस्तुएं आती है।
बस्तर के मुख्य घड़वा शिल्पकार- श्री पेदुम, सुखचंद, जयदेव बघेल, मानिक घड़वा है जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मानित किया गया हैं।
कलाकार : पदुमलाल, मनिया धड़वा, सुखदेव बघेल, जयदेव बघेल
8. लौह शिल्प
बस्तर में लौह शिल्प का कार्य लोहार जाति के लोग करते है।
बस्तर में मुरिया माड़िया आदिवासियों के विभिन्न अनुष्ठानों में लोहे से बने स्तम्भों के साथ देवी-देवता, पशु-पक्षियों व नाग आदि की मूर्तियां प्रदत्त की जाती है।
9. तीर धनुष कला
धनुष पर लोहे की किसी गरम सलाख से जलाकर कालात्मक अंलकरण बनाने की परिपाटी बस्तर के मुरिया आदिवासी में देखने को मिलता है।
10. प्रस्तर शिल्प
बस्तर इस शिल्प के मामले में भी विशेष स्थिति रखता है।
यहां का चित्रकूट क्षेत्र तो अपने प्रस्तर शिल्प के लिये विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
11. मुखौटा कला
मुखौटा मुख का प्रतिरूप है। मुखौटा एककला है।
छत्तीसगढ़ के आदिवासियों में नृत्य, नाट्य, उत्सव आदि अवसरों में ुमुखौटा धारण करने की परंपरा है।
भतरा जनजाति के भतरानाट में विभिन्न मुखौटों का प्रचलन है।
बस्तर के मुरिया जनजाति के मुखौटे आनुष्ठानिक नृत्यों के लिये बनाये जाते हैं।
घेरता उत्सव के नृत्य अवसर पर मुखिया जिसे नकटा कहा जाता है, मुखौटा पहनता है।
सरगुजा के पण्डो, कंवर और उरांव फसल कटाई के बाद घिरी उत्सव का आयोजन करते हैं और कठमुहा खिसरा लगाकर नृत्य करते हैं।
मेघनाथ स्तम्भ - कोरकू जनजाति द्वारा मेघनाथ खंभ का निर्माण किया जाता है।
सेमल स्तम्भ - भतरा जनजाति द्वारा होली के अवसर पर आयोजित डंडारी नाच का आरंभ सेमल स्तम्भ की परिक्रमा के साथ होता है।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख शिल्पकार
1. गोविन्द राम झारा:
रायगढ़ जिले के शिल्पग्राम एकताल के निवासी गोविन्दराम झारा जनजाति शिल्प के पर्याय माने जाते हैं।
ये देश विदेश में रायगढ़ के इस एकताल ग्राम के शिल्प को चरम उत्कर्ष पर संस्थापित करने वाले प्रथम पुरोधा थे।
पुरखौतिन मुक्तांगन (रायपुर) मंे इनके शिल्पों का संग्रह किया जाएगा।
2. रामलाल झारा:
रायगढ़ के एकताल ग्राम के निवासी
बेलमेटल के निपुर्ण कलाकार
बेलमेटल से मूर्तियां निर्मित करते हैं।
3. जयदेव बघेल:
बस्तर क्षेत्र के ख्याति लब्ध शिल्पकार
इनके शिल्प में जनजाति परंपरा अपने चरम उत्कर्ष को स्पर्श करती है।
इनको मास्टर, क्राफ्ट्समैन नेशनल अवार्ड मिल चुका है।
4. गेदरामसागर:
जांजगीर-चांपा जिले के सक्ती विकासखंड के ग्राम भदरीपाली टेमर निवासी गेंदराम सागर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
प्रस्तर शिल्प, चित्रकारिता और साहित्य मर्मज्ञ में निपुण।
गेंदराम सागर ने गद्य-पद्य में अनेक रचनाएं की थी, उनकी प्रमुख कृतियां है।
काव्य रचनाओं में - धरती मोर परान, तुलसी सालिग्राम्य महात्म्य, नर्मदा सोनभद्र मिलन एवं प्रहरी ।
गद्य रचनाओं में -तुलसी गंगाजल (कानी संग्रह), मोर जनम भुईया (छत्तीसगढ़ी निबंध संकलन), पंचामृत (छत्तीसगढ़ी नाटक)
5. श्रीमती सोनाबाई:
राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त सोनाबाई मिट्टी शिल्प की निपुर्ण कलाकार है।
सरगुजा के लखनपुर के पास अपने गांव में सोनाबाइ्र ने मिट्टी शिल्प की निराली दुनिया बसायी है।
6. वृंदावन:
जन्म - बस्तर संभाग के नगरनार में
प्रमुख मिट्टी शिल्पकार
7. क्षितरूराम:
बस्तर संभाग निवासी
मृत्तिका शिल्पकार
मृत्तिका शिल्पों में कालजयी भावनाओं का प्रस्फुटन हुआ है।
8. देवनाथ:
बस्तर संभाग के ग्राम एड़का निवासी।
देवनाथ का मृत्तिका शिल्प चमत्कारी माना जाता है।
अलंकृत हाथी बनाने में विशेष ख्याति अर्जित की।
9. शम्भू: नारायणपुर जिले मृत्तिका शिल्पकार
10. चंदन सिंह:
पैतृक ग्राम - नगरनार
राष्ट्रीय स्तर के मृत्तिका शिल्पकार
11. मानिक घड़वा :
घड़वा शिल्प बस्तर के आदिम भावनाओं का कलात्मक बिम्ब है, जिसे मानिक घड़वा ने अपनी प्रतिभा से आसीम आयाम दिया।
12. अजय मंडावी :
ये कांकेर निवासी लोकप्रिय शिलपकार हैं। इनका कला सौंदर्य नवीन आयामों को स्पर्श करता है।
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