वाराणसी. ऐसा माना जाता है कि नव वर्ष आज से लगभग 4,000 वर्ष पहले बेबीलीन नामक स्थान से मनाना शुरू हुआ था। एक जनवरी को मनाया जाने वाला नया वर्ष ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। इसकी शुरुआत रोमन कैलेंडर से हुई। इस पारंपरिक रोमन कैलेंडर का
भारत में भी अधिकांश लोग अंग्रेजी कलैण्डर के अनुसार नववर्ष 1 जनवरी को ही मनाते हैं किन्तु हमारे देश में एक बड़ा वर्ग चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नववर्ष का उत्सव मनाता है।
यह विडम्वना ही है कि हमारे समाज में जितनी धूम-धाम से विदेशी नववर्ष एक जनवरी का उत्सव नगरों-महानगरों में मनाया जाता है उसका शतांश हर्ष भी इस पावन-पर्व पर दिखाई नहीं देता.
वह नए कैलेंडर के अलावा और क्या है ? स्कूलों, ऑफ़िसों में छुट्टी, टीवी पर रात भर के कार्यक्रम और रात के बारह बजे धमाल करने से आगे इस नव वर्ष का क्या महत्व ...
छत्तीसगढ़ : यहां के आदिवासी तरह-तरह के गीत गाकर नव वर्ष का स्वागत करते हैं। इस दिन यहां बच्चों को गोद लेने की प्रथा भी है ताकि वर्ष का प्रत्येक दिन खुशियों से भरा रहे. - देश न्यूज़
वाराणसी. ऐसा माना जाता है कि नव वर्ष आज से लगभग 4,000 वर्ष पहले बेबीलीन नामक स्थान से मनाना शुरू हुआ था। एक जनवरी को मनाया जाने वाला नया वर्ष ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। इसकी शुरुआत रोमन कैलेंडर से हुई। इस पारंपरिक रोमन कैलेंडर का
भारत में भी अधिकांश लोग अंग्रेजी कलैण्डर के अनुसार नववर्ष 1 जनवरी को ही मनाते हैं किन्तु हमारे देश में एक बड़ा वर्ग चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नववर्ष का उत्सव मनाता है।
यह विडम्वना ही है कि हमारे समाज में जितनी धूम-धाम से विदेशी नववर्ष एक जनवरी का उत्सव नगरों-महानगरों में मनाया जाता है उसका शतांश हर्ष भी इस पावन-पर्व पर दिखाई नहीं देता.
वह नए कैलेंडर के अलावा और क्या है ? स्कूलों, ऑफ़िसों में छुट्टी, टीवी पर रात भर के कार्यक्रम और रात के बारह बजे धमाल करने से आगे इस नव वर्ष का क्या महत्व ...
छत्तीसगढ़ : यहां के आदिवासी तरह-तरह के गीत गाकर नव वर्ष का स्वागत करते हैं। इस दिन यहां बच्चों को गोद लेने की प्रथा भी है ताकि वर्ष का प्रत्येक दिन खुशियों से भरा रहे. - देश न्यूज़