"पाली" शब्द बौद्धों के पवित्र ग्रंथों के एक समूह को दर्शाता है। पाली भाषा में साहित्य की प्रकृति मूल रूप से धार्मिक और दार्शनिक है। पाली साहित्य में बौद्ध ग्रंथों और धर्मग्रंथों का समृद्ध संग्रह है।
पालि साहित्य में मुख्यत: बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान् बुद्ध के उपदेशों का संग्रह है। किंतु इसका कोई भाग बुद्ध के जीवनकाल में व्यवस्थित या लिखित रूप धारण कर चुका था, यह कहना कठिन है।
भारत के इतिहास के सम्बन्ध के अनेकों स्त्रोत उपलब्ध हैं, कुछ स्त्रोत काफी विश्वसनीय व वैज्ञानिक हैं, अन्य मान्यताओं पर आधारित हैं।प्राचीन भारत के इतिहास के सम्बन्ध में जानकारी के मुख्य स्त्रोतों को 3 भागों में बांटा जा सकता है I
त्रिपिटक ग्रंथों को अंग्रेजी भाषा में पाली सिद्धांत के रूप में जाना जाता है, जोकि बौद्ध धर्म ग्रंथों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक पारंपरिक शब्द है।
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में बौद्ध साहित्य का विशेष महत्त्व है. इसमें जातक, पिटक और निकाय आदि आते हैं. चलिए जानते हैं बौद्ध साहित्य से सम्बंधित कुछ ऐसी ही शब्दावली के विषय में जो परीक्षा में अक्सर पूछे जाते हैं. I
भगवान बुद्ध के अनुसार धम्म जीवन की पवित्रता बनाए रखना और तथ्य-ज्ञान में पूर्णता प्राप्त करना है,साथ ही निर्वाण प्राप्त करना और तृष्णा का त्याग करना है। इसके अलावा भगवान बुद्ध ने सभी संस्कार को अनित्य बताया है।
बौद्ध साहित्य के दो भाग हैं – 1.) त्रिपिटक 2.) अनुपिटक ( त्रिपिटकों पर आधारित )। त्रिपिटक बौद्ध साहित्य- त्रिपिटक बौद्ध धर्म के पाली भाषा में लिखित प्रमुख ग्रंथ हैं।
समय के साथ वैदिक संस्कृति ही संशोधन प्राप्त कर (व्याकरण के नियमों से सँवर कर) संस्कृत बनी और 500 ई. पूर्व से 100 ई. तक चलती रही। संस्कृत के बाद पहली प्राकृत या पाली आ गई। यह गौतमबुद्ध के समय बोली जाती थी, जो 500 ई. पूर्व से 100 ई. तक रही।
पालि साहित्य में मुख्यत: बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान् बुद्ध के उपदेशों का संग्रह है। किंतु इसका कोई भाग बुद्ध के जीवनकाल में व्यवस्थित या लिखित रूप धारण कर चुका था, यह कहना कठिन है।
भारत के इतिहास के सम्बन्ध के अनेकों स्त्रोत उपलब्ध हैं, कुछ स्त्रोत काफी विश्वसनीय व वैज्ञानिक हैं, अन्य मान्यताओं पर आधारित हैं।प्राचीन भारत के इतिहास के सम्बन्ध में जानकारी के मुख्य स्त्रोतों को 3 भागों में बांटा जा सकता है I
त्रिपिटक ग्रंथों को अंग्रेजी भाषा में पाली सिद्धांत के रूप में जाना जाता है, जोकि बौद्ध धर्म ग्रंथों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक पारंपरिक शब्द है।
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में बौद्ध साहित्य का विशेष महत्त्व है. इसमें जातक, पिटक और निकाय आदि आते हैं. चलिए जानते हैं बौद्ध साहित्य से सम्बंधित कुछ ऐसी ही शब्दावली के विषय में जो परीक्षा में अक्सर पूछे जाते हैं. I
भगवान बुद्ध के अनुसार धम्म जीवन की पवित्रता बनाए रखना और तथ्य-ज्ञान में पूर्णता प्राप्त करना है,साथ ही निर्वाण प्राप्त करना और तृष्णा का त्याग करना है। इसके अलावा भगवान बुद्ध ने सभी संस्कार को अनित्य बताया है।
बौद्ध साहित्य के दो भाग हैं – 1.) त्रिपिटक 2.) अनुपिटक ( त्रिपिटकों पर आधारित )। त्रिपिटक बौद्ध साहित्य- त्रिपिटक बौद्ध धर्म के पाली भाषा में लिखित प्रमुख ग्रंथ हैं।
समय के साथ वैदिक संस्कृति ही संशोधन प्राप्त कर (व्याकरण के नियमों से सँवर कर) संस्कृत बनी और 500 ई. पूर्व से 100 ई. तक चलती रही। संस्कृत के बाद पहली प्राकृत या पाली आ गई। यह गौतमबुद्ध के समय बोली जाती थी, जो 500 ई. पूर्व से 100 ई. तक रही।