प्राकृत साहित्य प्राचीन और मध्यकालीन भारत में प्राकृत में लिखी गई विभिन्न प्रकार की साहित्यिक कृतियों का समुच्चय है। प्राकृत साहित्य में अपभ्रंश और अवहट्ट साहित्यिक रचनाएं भी शामिल हैं, जो भाषा के इतने पुराने रूप नहीं हैं।
मध्ययुगीन प्राकृतों का गद्य-पद्यात्मक साहित्य विशाल मात्रा में उपलब्ध है। सबसे प्राचीन वह अर्धमागधी साहित्य है जिसमें जैन धार्मिक ग्रंथ रचे गए हैं तथा जिन्हें समष्टि रूप से जैनागम या जैनश्रुतांग कहा जाता है।
प्राकृत भाषा भारत की भाषा है। यह जनभाषा के रूप में लोकप्रिय रही है। जनभाषा अथवा लोकभाषा ही प्राकृत भाषा है । इस लोक भाषा ‘प्राकृत’ का समृद्ध साहित्य रहा है, जिसके अध्ययन के बिना भारतीय समाज एवं संस्कृति का अध्ययन अपूर्ण रहता है।
एक प्राचीन भाषा जिसका प्रचार प्राचीन काल में भारत में था और जो प्राचीन संस्कृत नाटकों आदि में स्त्रियों, सेवकों और साधारण व्यक्तियों की बोलचाल में तथा अलग ग्रंथों में पाई जाती है । भारत की बालचाल की भाषाएँ बोलचाल की प्राकृतों से बनी हैं ।
समय के साथ वैदिक संस्कृति ही संशोधन प्राप्त कर (व्याकरण के नियमों से सँवर कर) संस्कृत बनी और 500 ई. पूर्व से 100 ई. तक चलती रही। संस्कृत के बाद पहली प्राकृत या पाली आ गई। यह गौतमबुद्ध के समय बोली जाती थी, जो 500 ई. पूर्व से 100 ई. तक रही।
दिल्ली के प्रो. सुदीप जैन ने कहा कि संस्कृत और अन्य आर्य भाषाओं के साहित्यकार प्राकृत के साहित्य को आधार मानकर रचना करते रहे हैं। भाषाएं साथ-साथ ही विकसित होती हैं।संस्कृत और प्राकृत एक ही ज्ञानगंगा के दो किनारे हैं।
राज्यपाल सत्यपाल मलिक की अध्यक्षता में गुरुवार को प्राकृत जैन शास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली की अधिष्ठात्री समिति की बैठक राजभवन में हुई। राज्यपाल ने संस्थान को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में विकसित करने पर जोर दिया।
मध्ययुगीन प्राकृतों का गद्य-पद्यात्मक साहित्य विशाल मात्रा में उपलब्ध है। सबसे प्राचीन वह अर्धमागधी साहित्य है जिसमें जैन धार्मिक ग्रंथ रचे गए हैं तथा जिन्हें समष्टि रूप से जैनागम या जैनश्रुतांग कहा जाता है।
प्राकृत भाषा भारत की भाषा है। यह जनभाषा के रूप में लोकप्रिय रही है। जनभाषा अथवा लोकभाषा ही प्राकृत भाषा है । इस लोक भाषा ‘प्राकृत’ का समृद्ध साहित्य रहा है, जिसके अध्ययन के बिना भारतीय समाज एवं संस्कृति का अध्ययन अपूर्ण रहता है।
एक प्राचीन भाषा जिसका प्रचार प्राचीन काल में भारत में था और जो प्राचीन संस्कृत नाटकों आदि में स्त्रियों, सेवकों और साधारण व्यक्तियों की बोलचाल में तथा अलग ग्रंथों में पाई जाती है । भारत की बालचाल की भाषाएँ बोलचाल की प्राकृतों से बनी हैं ।
समय के साथ वैदिक संस्कृति ही संशोधन प्राप्त कर (व्याकरण के नियमों से सँवर कर) संस्कृत बनी और 500 ई. पूर्व से 100 ई. तक चलती रही। संस्कृत के बाद पहली प्राकृत या पाली आ गई। यह गौतमबुद्ध के समय बोली जाती थी, जो 500 ई. पूर्व से 100 ई. तक रही।
दिल्ली के प्रो. सुदीप जैन ने कहा कि संस्कृत और अन्य आर्य भाषाओं के साहित्यकार प्राकृत के साहित्य को आधार मानकर रचना करते रहे हैं। भाषाएं साथ-साथ ही विकसित होती हैं।संस्कृत और प्राकृत एक ही ज्ञानगंगा के दो किनारे हैं।
राज्यपाल सत्यपाल मलिक की अध्यक्षता में गुरुवार को प्राकृत जैन शास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली की अधिष्ठात्री समिति की बैठक राजभवन में हुई। राज्यपाल ने संस्थान को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में विकसित करने पर जोर दिया।