लॉक से लेकर कांट और हीगेल तक जिस दार्शनिक विचारधारा का विकास हुआ, 19वीं शती के अंत तक उसे मात्र ऐतिहासिक तथ्य समझा जाने लगा। कांट एवं हीगेल की विचारधारा इस शती के अंत तक पूरे यूरोप में फैल चुकी थी,
समकालीन धर्मविज्ञान को सामान्य रूप से विश्व युद्ध – 1 के पश्चात् से लेकर वर्तमान तक पाए जाने वाले धर्मविज्ञान और धर्मवैज्ञानिक प्रचलनों के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जाता है।
लॉक से लेकर कांट और हीगेल तक जिस दार्शनिक विचारधारा का विकास हुआ, 19वीं शती के अंत तक उसे मात्र ऐतिहासिक तथ्य समझा जाने लगा। कांट एवं हीगेल की विचारधारा इस शती के अंत तक पूरे यूरोप में फैल चुकी थी,
समकालीन धर्मविज्ञान को सामान्य रूप से विश्व युद्ध – 1 के पश्चात् से लेकर वर्तमान तक पाए जाने वाले धर्मविज्ञान और धर्मवैज्ञानिक प्रचलनों के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जाता है।