साहित्यिक मनोरंजन के सबसे पुराने रूपों में से एक, नाटक कलाकारों द्वारा कहानी की जीवंत प्रस्तुति है जो कहानी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिकाओं वाले चरित्र निभाते हैं।
नाटक की गिनती काव्यों में है। काव्य दो प्रकार के माने गये हैं— श्रव्य और दृश्य। इसी दृश्य काव्य का एक भेद नाटक माना गया है। पर दृष्टि द्वारा मुख्य रूप से इसका ग्रहण होने के कारण दृश्य काव्य मात्र को नाटक कहने लगे हैं।
हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। उस काल के भारतेन्दु तथा उनके समकालीन नाटककारों ने लोक चेतना के विकास के लिए नाटकों की रचना की इसलिए उस समय की सामाजिक समस्याओं को नाटकों में अभिव्यक्त होने का अच्छा अवसर मिला।
आधुनिक काल की अन्य गद्य-विधाओं के ही समान हिन्दी नाटक का भी आरम्भ पश्चिम के संपर्क का फल माना जाता है। भारत के कई भागों में अंग्रेजों ने अपने मनोरंजन के लिए नाट्यशालाओं का निर्माण किया जिनमें शेक्सपीयर तथा अन्य अंग्रेजी नाटककारों के नाटकों का अभिनय होता था।
जब हम सिनेमा देखते हैं तो हम पर्दे पर चल रहे नाटक को देख रहे होते हैं। एक गुरु हमें उस पर्दे पर हो रहे प्रोजेक्शन की हकीकत को समझाने के लिए हमें प्रोजेक्शन रूम तक ले जाता है।
अक्सर इस बात का रोना रोया जाता है कि हिंदी में अच्छे नाटक नहीं हैं। लेकिन इस बात पर कभी विचार नहीं किया जाता कि हिंदी में अच्छे नाटक क्यों नहीं हैं? क्या हिंदी के लेखक प्रतिभाशून्य हैं?
हिंदी नाटक विधा का आरंभ हिंदी नाट्य साहित्य का आरंभ आधुनिक काल से होता है । हिंदी से पहले संस्कृत और प्राकृत में समृद्धि नाट्य- परंपरा थी लेकिन हिंदी नाटकों का विकास आधुनिक युग से ही संभव हो सका ।
राजधानी में अगले महीने हिन्दी के पहले ‘हॉरर नाटक’ का आयोजन किया जा रहा है। इस नाटक में विशेष इफेक्ट्स का इस्तेमाल किया जाएगा। इस डरावने नाटक की कहानी एक किशोरी पर केंद्रित है जिसके माता-पिता उसके बचपन में ही गुजर जाते हैं और उसके चाचा उसे एक अनाथालय में भेज देते हैं।
हिंदी में लिखे गए अनेक नाटकों में से 10 सर्वश्रेष्ठ नाटकों के बारे में बता रहे हैं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक और नाटककार देवेंद्र राज अंकुर.
हिंदी नाटक का उद्भव और विकास -भारतेंदु हिंदी नाटक के जन्मदाता ही नहीं अपने युग के सर्वश्रेष्ठ नाटककार भी है .इनकी सफलता का सबसे कारण उनका रंगमंच विषयक ज्ञान और अनुभव था .इनके नाटकों के कथानक इतिहास ,पुराण तथा समसामयिक है .I
‘किताब’ नाम के इस नाटक में मुअज्जिन (अजान पढ़ने वाला) की बेटी ने कहा कि वह अपने पिता की तरह ही अजान पढ़ना चाहती है. नाटक में दिखाया गया कि मना करने के बाद लड़की को इसकी इजाजत दे दी जाती है. मुसलिम लड़की द्वारा अजान पढ़ने पर विरोध शुरू हो गया है.I
भारतीय नाटक का इतिहास भारत में संस्कृत के भण्डार से उत्पन्न और विकसित हुआ है। भारतीय नाटक ने प्राचीन काल से ही अपने अविश्वसनीय प्रभाव और सीमा को पूर्णता प्रदान की है। नाटक मूल रूप से प्रदर्शन कला का एक रूप है I
नाटक की गिनती काव्यों में है। काव्य दो प्रकार के माने गये हैं— श्रव्य और दृश्य। इसी दृश्य काव्य का एक भेद नाटक माना गया है। पर दृष्टि द्वारा मुख्य रूप से इसका ग्रहण होने के कारण दृश्य काव्य मात्र को नाटक कहने लगे हैं।
हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। उस काल के भारतेन्दु तथा उनके समकालीन नाटककारों ने लोक चेतना के विकास के लिए नाटकों की रचना की इसलिए उस समय की सामाजिक समस्याओं को नाटकों में अभिव्यक्त होने का अच्छा अवसर मिला।
आधुनिक काल की अन्य गद्य-विधाओं के ही समान हिन्दी नाटक का भी आरम्भ पश्चिम के संपर्क का फल माना जाता है। भारत के कई भागों में अंग्रेजों ने अपने मनोरंजन के लिए नाट्यशालाओं का निर्माण किया जिनमें शेक्सपीयर तथा अन्य अंग्रेजी नाटककारों के नाटकों का अभिनय होता था।
जब हम सिनेमा देखते हैं तो हम पर्दे पर चल रहे नाटक को देख रहे होते हैं। एक गुरु हमें उस पर्दे पर हो रहे प्रोजेक्शन की हकीकत को समझाने के लिए हमें प्रोजेक्शन रूम तक ले जाता है।
अक्सर इस बात का रोना रोया जाता है कि हिंदी में अच्छे नाटक नहीं हैं। लेकिन इस बात पर कभी विचार नहीं किया जाता कि हिंदी में अच्छे नाटक क्यों नहीं हैं? क्या हिंदी के लेखक प्रतिभाशून्य हैं?
हिंदी नाटक विधा का आरंभ हिंदी नाट्य साहित्य का आरंभ आधुनिक काल से होता है । हिंदी से पहले संस्कृत और प्राकृत में समृद्धि नाट्य- परंपरा थी लेकिन हिंदी नाटकों का विकास आधुनिक युग से ही संभव हो सका ।
राजधानी में अगले महीने हिन्दी के पहले ‘हॉरर नाटक’ का आयोजन किया जा रहा है। इस नाटक में विशेष इफेक्ट्स का इस्तेमाल किया जाएगा। इस डरावने नाटक की कहानी एक किशोरी पर केंद्रित है जिसके माता-पिता उसके बचपन में ही गुजर जाते हैं और उसके चाचा उसे एक अनाथालय में भेज देते हैं।
हिंदी में लिखे गए अनेक नाटकों में से 10 सर्वश्रेष्ठ नाटकों के बारे में बता रहे हैं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक और नाटककार देवेंद्र राज अंकुर.
हिंदी नाटक का उद्भव और विकास -भारतेंदु हिंदी नाटक के जन्मदाता ही नहीं अपने युग के सर्वश्रेष्ठ नाटककार भी है .इनकी सफलता का सबसे कारण उनका रंगमंच विषयक ज्ञान और अनुभव था .इनके नाटकों के कथानक इतिहास ,पुराण तथा समसामयिक है .I
‘किताब’ नाम के इस नाटक में मुअज्जिन (अजान पढ़ने वाला) की बेटी ने कहा कि वह अपने पिता की तरह ही अजान पढ़ना चाहती है. नाटक में दिखाया गया कि मना करने के बाद लड़की को इसकी इजाजत दे दी जाती है. मुसलिम लड़की द्वारा अजान पढ़ने पर विरोध शुरू हो गया है.I
भारतीय नाटक का इतिहास भारत में संस्कृत के भण्डार से उत्पन्न और विकसित हुआ है। भारतीय नाटक ने प्राचीन काल से ही अपने अविश्वसनीय प्रभाव और सीमा को पूर्णता प्रदान की है। नाटक मूल रूप से प्रदर्शन कला का एक रूप है I