शैली तौर-तरीके, लहज़े, विषय वस्तु, सामग्री और रूप में समानता के आधार पर साहित्य की एक श्रेणी है। कई विधाएँ विशिष्ट ऐतिहासिक विचार साझा करती हैं और इसके कारण लिखित कार्य अनेक श्रेणियों में शामिल हो सकते हैं।
शैली और विज्ञान जिसका शाब्दिक अर्थ है 'शैली का विज्ञान' अर्थात जिस विज्ञान में शैली का वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित रूप सें अध्ययन किया जाए वह शैलीविज्ञान है। ’शैली’ शब्द अंग्रेजी के स्टाइल शब्द का हिन्दी रूपान्तर है।
शैली हिन्दी शब्दकोश का एक शब्द है, जो अंग्रेज़ी के 'स्टाइल' का अनुवाद है और अंग्रेज़ी साहित्य के प्रभाव से हिन्दी में आया है। प्राचीन साहित्यशास्त्र में शैली से मिलते-जुलते अर्थ को देने वाला एक शब्द प्रयुक्त हुआ है- 'रीति'।
कविता लेखन का सबसे प्रखर रूप है। यह एक लेखक को बहुत ही व्यक्तिगत तरीके से अपनी गहरी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने की अनुमति देता है। यह अपने संदेश को पाठकों तक पहुँचाने के लिए आलंकारिक भाषा, लय और कल्पना पर बहुत निर्भर करता है।
द्रविड़ शैली दक्षिण भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है। यह शैली दक्षिण भारत में विकसित होने के कारण द्रविड़ शैली कहलाती है। तमिलनाडु व निकटवर्ती क्षेत्रों के अधिकांश मंदिर इसी श्रेणी के होते हैं।
पाल शैली के चित्रों में अजंता शैली की विशेषताएं मिलती हैं या यूं कहें यह जनता शैली की एक विकृति शैली का ही रूप है यहां पर चित्र 22.25×2.25 इंच के ताड़पत्र पर बने हैं पोथी में चित्र आयताकार अथवा वर्गाकार अंतराल में अंकित किए जाते थे I
वेसर शैली भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है। नागर और द्रविड़ शैली के मिश्रित रूप को वेसर या बेसर शैली की संज्ञा दी गई है। यह विन्यास में द्रविड़ शैली का तथा रूप में नागर जैसा होता है।[1] इस शैली के मंदिर विन्ध्य पर्वतमाला से कृष्णा नदी के बीच निर्मित हैं।
भारतीय साहित्य में यह काल लोक भाषाओं की रचना का काल माना जाता है इस काल में स्थानीय लोग भाषाओं में अधिकांशत वीरगाथा काव्य की रचना हुई अतः साहित्य के दृष्टिकोण से इससे वीरगाथा काल चारण काल या अपभ्रंश काल कहा जाता है I
विचारात्मक शैली- साहित्यिक और विचारात्मक निबंधों में 'कन्हैया लाल मिश्र' जी की शैली में वर्णनात्मक, विचारात्मक तथा हास्य विनोद शैलियों का सफल प्रयोग किया गया है I
इस शैली की भाषा संयत और गंभीर है।
उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांत कथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है।
शैली और विज्ञान जिसका शाब्दिक अर्थ है 'शैली का विज्ञान' अर्थात जिस विज्ञान में शैली का वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित रूप सें अध्ययन किया जाए वह शैलीविज्ञान है। ’शैली’ शब्द अंग्रेजी के स्टाइल शब्द का हिन्दी रूपान्तर है।
शैली हिन्दी शब्दकोश का एक शब्द है, जो अंग्रेज़ी के 'स्टाइल' का अनुवाद है और अंग्रेज़ी साहित्य के प्रभाव से हिन्दी में आया है। प्राचीन साहित्यशास्त्र में शैली से मिलते-जुलते अर्थ को देने वाला एक शब्द प्रयुक्त हुआ है- 'रीति'।
कविता लेखन का सबसे प्रखर रूप है। यह एक लेखक को बहुत ही व्यक्तिगत तरीके से अपनी गहरी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने की अनुमति देता है। यह अपने संदेश को पाठकों तक पहुँचाने के लिए आलंकारिक भाषा, लय और कल्पना पर बहुत निर्भर करता है।
द्रविड़ शैली दक्षिण भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है। यह शैली दक्षिण भारत में विकसित होने के कारण द्रविड़ शैली कहलाती है। तमिलनाडु व निकटवर्ती क्षेत्रों के अधिकांश मंदिर इसी श्रेणी के होते हैं।
पाल शैली के चित्रों में अजंता शैली की विशेषताएं मिलती हैं या यूं कहें यह जनता शैली की एक विकृति शैली का ही रूप है यहां पर चित्र 22.25×2.25 इंच के ताड़पत्र पर बने हैं पोथी में चित्र आयताकार अथवा वर्गाकार अंतराल में अंकित किए जाते थे I
वेसर शैली भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है। नागर और द्रविड़ शैली के मिश्रित रूप को वेसर या बेसर शैली की संज्ञा दी गई है। यह विन्यास में द्रविड़ शैली का तथा रूप में नागर जैसा होता है।[1] इस शैली के मंदिर विन्ध्य पर्वतमाला से कृष्णा नदी के बीच निर्मित हैं।
भारतीय साहित्य में यह काल लोक भाषाओं की रचना का काल माना जाता है इस काल में स्थानीय लोग भाषाओं में अधिकांशत वीरगाथा काव्य की रचना हुई अतः साहित्य के दृष्टिकोण से इससे वीरगाथा काल चारण काल या अपभ्रंश काल कहा जाता है I
विचारात्मक शैली- साहित्यिक और विचारात्मक निबंधों में 'कन्हैया लाल मिश्र' जी की शैली में वर्णनात्मक, विचारात्मक तथा हास्य विनोद शैलियों का सफल प्रयोग किया गया है I
इस शैली की भाषा संयत और गंभीर है।
उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांत कथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है।