मछली जलीय पर्यावरण पर आश्रित जलचर जीव है तथा जलीय पर्यावरण को संतुलित रखने में इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह कथन अपने में पर्याप्त बल रखता है जिस पानी में मछली नहीं हो तो निश्चित ही उस पानी की जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं है।
मछली की बीज (जीरा) को डालने के पूर्व तालाब को साफ़ करना आवश्यक है। तालाब से सभी जलीय पौधों एवं खाऊ और छोटी-छोटी मछलियों को निकाल देना चाहिए। इसके बारे में अधिक जानने के लिए, आगे पढ़ें।
भारत में मछली खाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट बताती है कि 2030 में भारत में मछली की कंजप्शन चार गुणा बढ़ जाएगी। यही वजह है कि देश में मछली पालन का बिजनेस भी तेजी से बढ़ रहा है। सरकार भी मछली पालन को बड़ी प्रमुखता दे रही है। मोदी सरकार ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक स्कीम चला रही है, जिसके तहत मछली पालन का बिजनेस करने वालों को सरकार लगभग 75 फीसदी फाइनेंशियल सपोर्ट करती है। दरअसल, मोदी सरकार ने फार्मर्स की इनकम दोगुनी करने की घोषणा की है। यह स्कीम उसी घोषणा का हिस्सा है। सरकार का दावा है कि काफी कम जगह और कम पानी में मछली पालन की तकनीक अपनाने पर अच्छी खासी इनकम हो सकती है। क्या है यह तकनीक इस तकनीक को 'रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम' (आरएएस) कहा जाता है। यानि, जिसमें पानी का बहाव बना रहता है और पानी के आने-जाने की व्यवस्था की जाती है। इसमें कम जगह और कम पानी लगता है। जैसे कि अगर साधारण मछली पालन किया जाता है तो एक एकड़ तालाब में सिर्फ 15 से 20 हजार ही पंगेशियस मछली पाली जा सकती हैं, जबकि एक एकड़ में करीब 60 लाख लीटर पानी होता है। अगर तालाब में 20 हजार मछली डाली हैं तो एक मछली को 300 लीटर पानी में रखा जाता है। जबकि इस सिस्टम के जरिए एक हजार लीटर पानी में 110-120 मछली डालते है। इस हिसाब से एक मछली को केवल नौ लीटर पानी में रखा जाता है। इस सिस्टम में एक हेक्टेयर में 8 से 10 टन मछली पाली जा सकती है। कितनी आएगी लागत अगर आप आरएएस तकनीक के अनुसार मछली पालन करना चाहते हैं तो आपको सिर्फ 5 लाख रुपए का इंतजाम करना होगा। इस राशि से आप लगभग 20 हजार किलोग्राम वजन की मछलियां पाल सकते हैं। नेशनल फिशरी डेवलपमेंट बोर्ड द्वारा तैयार की गई प्रोजेक्ट रिपोर्ट के मुताबिक, आप 20 हजार किग्रा कैपेसिटी वाले पोंड बनाते हैं तो आपके प्रोजेक्ट की कॉस्ट 20 लाख रुपए आएगी। इसमें कैपिटल कॉस्ट 9 लाख 64 हजार रुपए और ऑपरेशनल कॉस्ट 10 लाख 36 हजार रुपए होगी। सरकार कितना करेगी सपोर्ट 20 लाख रुपए के प्रोजेक्ट में से आपको केवल 5 लाख रुपए का इंतजाम करना होगा। बाकी 7 लाख 50 हजार रुपए केंद्र सरकार और 3 लाख 75 हजार रुपए राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी के तौर पर दिया जाएगा। इसके अलावा सरकार 3 लाख 75 हजार रुपए का बैंक लोन भी दिलाएगी।
बिहार में नीली क्रांति (मछली पालन) की दिशा में अशोक ने अच्छी पहल शुरू की है। उनसे प्रेरणा लेकर मधुबनी जिले के सैकड़ों नवयुवक मत्स्य पालन कार्य से जुड़ गए हैं।इसके बारे में अधिक जानने के लिए, आगे पढ़ें।
मछली पालन शुरू करने के लिए अब आपको बड़े-बड़े तालाब और ज्यादा पानी की जरूरत नहीं है। रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) तकनीक की मदद से सीमेंट के टैंक बनाकर मछली पालन कर सकते हैं।
रायपुर नईदुनिया प्रतिनिधि मछली पालकों अब तालाब खुदवाने की आवश्यकता नहीं होगी बल्कि खेत या घर के आसपास 250 स्क्वायर फीट के सीमेंट के टैंक में मछली पालन कर सकते हैं प्रदेश में पहली बार यह तकनीक ब्राजील के आधार पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में शुरू हो रही है I
पिछले तीन वर्षों से कम लागत, कम जगह और कम पानी में परेवज़ खान ज्यादा से ज्यादा मछली का उत्पादन कर रहे है। भारत सरकार ने उनके इस मॅाडल को नीली क्रांति के अंर्तगत पूरे देश में 'रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम' रियोजना के नाम से इस वर्ष शुरू किया है।
वायुश्वासी मछलियों के हवा में सांस लेने वाली मछलियों के रूप में भी जाना जाता है । सामान्यत: मछलियों अपने गलफड़े द्वारा ही श्वसन क्रिया करती हैं लेकिन इन मछलियों में गलफड़े के अलावा भी कुछ विशेष प्रकार की संरचनाएं होती हैं I
मछली जलीय पर्यावरण पर आश्रित जलचर जीव है तथा जलीय पर्यावरण को संतुलित रखने में इसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह कथन अपने में पर्याप्त बल रखता है जिस पानी में मछली नहीं हो तो निश्चित ही उस पानी की जल जैविक स्थिति सामान्य नहीं है।
मछली की बीज (जीरा) को डालने के पूर्व तालाब को साफ़ करना आवश्यक है। तालाब से सभी जलीय पौधों एवं खाऊ और छोटी-छोटी मछलियों को निकाल देना चाहिए। इसके बारे में अधिक जानने के लिए, आगे पढ़ें।
भारत में मछली खाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट बताती है कि 2030 में भारत में मछली की कंजप्शन चार गुणा बढ़ जाएगी। यही वजह है कि देश में मछली पालन का बिजनेस भी तेजी से बढ़ रहा है। सरकार भी मछली पालन को बड़ी प्रमुखता दे रही है। मोदी सरकार ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक स्कीम चला रही है, जिसके तहत मछली पालन का बिजनेस करने वालों को सरकार लगभग 75 फीसदी फाइनेंशियल सपोर्ट करती है। दरअसल, मोदी सरकार ने फार्मर्स की इनकम दोगुनी करने की घोषणा की है। यह स्कीम उसी घोषणा का हिस्सा है। सरकार का दावा है कि काफी कम जगह और कम पानी में मछली पालन की तकनीक अपनाने पर अच्छी खासी इनकम हो सकती है। क्या है यह तकनीक इस तकनीक को 'रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम' (आरएएस) कहा जाता है। यानि, जिसमें पानी का बहाव बना रहता है और पानी के आने-जाने की व्यवस्था की जाती है। इसमें कम जगह और कम पानी लगता है। जैसे कि अगर साधारण मछली पालन किया जाता है तो एक एकड़ तालाब में सिर्फ 15 से 20 हजार ही पंगेशियस मछली पाली जा सकती हैं, जबकि एक एकड़ में करीब 60 लाख लीटर पानी होता है। अगर तालाब में 20 हजार मछली डाली हैं तो एक मछली को 300 लीटर पानी में रखा जाता है। जबकि इस सिस्टम के जरिए एक हजार लीटर पानी में 110-120 मछली डालते है। इस हिसाब से एक मछली को केवल नौ लीटर पानी में रखा जाता है। इस सिस्टम में एक हेक्टेयर में 8 से 10 टन मछली पाली जा सकती है। कितनी आएगी लागत अगर आप आरएएस तकनीक के अनुसार मछली पालन करना चाहते हैं तो आपको सिर्फ 5 लाख रुपए का इंतजाम करना होगा। इस राशि से आप लगभग 20 हजार किलोग्राम वजन की मछलियां पाल सकते हैं। नेशनल फिशरी डेवलपमेंट बोर्ड द्वारा तैयार की गई प्रोजेक्ट रिपोर्ट के मुताबिक, आप 20 हजार किग्रा कैपेसिटी वाले पोंड बनाते हैं तो आपके प्रोजेक्ट की कॉस्ट 20 लाख रुपए आएगी। इसमें कैपिटल कॉस्ट 9 लाख 64 हजार रुपए और ऑपरेशनल कॉस्ट 10 लाख 36 हजार रुपए होगी। सरकार कितना करेगी सपोर्ट 20 लाख रुपए के प्रोजेक्ट में से आपको केवल 5 लाख रुपए का इंतजाम करना होगा। बाकी 7 लाख 50 हजार रुपए केंद्र सरकार और 3 लाख 75 हजार रुपए राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी के तौर पर दिया जाएगा। इसके अलावा सरकार 3 लाख 75 हजार रुपए का बैंक लोन भी दिलाएगी।
बिहार में नीली क्रांति (मछली पालन) की दिशा में अशोक ने अच्छी पहल शुरू की है। उनसे प्रेरणा लेकर मधुबनी जिले के सैकड़ों नवयुवक मत्स्य पालन कार्य से जुड़ गए हैं।इसके बारे में अधिक जानने के लिए, आगे पढ़ें।
मछली पालन शुरू करने के लिए अब आपको बड़े-बड़े तालाब और ज्यादा पानी की जरूरत नहीं है। रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) तकनीक की मदद से सीमेंट के टैंक बनाकर मछली पालन कर सकते हैं।
रायपुर नईदुनिया प्रतिनिधि मछली पालकों अब तालाब खुदवाने की आवश्यकता नहीं होगी बल्कि खेत या घर के आसपास 250 स्क्वायर फीट के सीमेंट के टैंक में मछली पालन कर सकते हैं प्रदेश में पहली बार यह तकनीक ब्राजील के आधार पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में शुरू हो रही है I
पिछले तीन वर्षों से कम लागत, कम जगह और कम पानी में परेवज़ खान ज्यादा से ज्यादा मछली का उत्पादन कर रहे है। भारत सरकार ने उनके इस मॅाडल को नीली क्रांति के अंर्तगत पूरे देश में 'रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम' रियोजना के नाम से इस वर्ष शुरू किया है।
वायुश्वासी मछलियों के हवा में सांस लेने वाली मछलियों के रूप में भी जाना जाता है । सामान्यत: मछलियों अपने गलफड़े द्वारा ही श्वसन क्रिया करती हैं लेकिन इन मछलियों में गलफड़े के अलावा भी कुछ विशेष प्रकार की संरचनाएं होती हैं I