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प्लेट विवर्तनिकी - विकिपीडिया
प्लेट विवर्तनिकी एक वैज्ञानिक सिद्धान्त है जो पृथ्वी के स्थलमण्डल में बड़े पैमाने पर होने वाली गतियों की व्याख्या प्रस्तुत करता है। साथ ही महाद्वीपों, महासागरों और पर्वतों के रूप में धरातलीय उच्चावच के निर्माण तथा भूकम्प और ज्वालामुखी जैसी घटनाओं ....
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9F_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80
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भारतीय प्लेट - विकिपीडिया
भारतीय तख़्ता एक भौगोलिक प्लेट है जिसपर भारतीय उपमहाद्वीप का अधिकाँश हिस्सा और इर्द-गिर्द का बड़ा समुद्री क्षेत्र स्थित है। यह गोंडवानालैंड नाम के प्राचीन महाद्वीप का हिस्सा था जो अलग होकर उत्तर की ओर बढ़ा और अपने वर्तमान स्थान पर जा पहुँचा।
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9F
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प्लेट टेक्टोनिक्स - भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर
प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धांत के अनुसार स्थलमण्डल कई दृढ़ प्लेटों के रूप में विभाजित है। इस सिद्धांत के अनुसार भूगर्भ में उत्पन्न ऊष्मीय संवहनीय धाराओं के प्रभाव के अंतर्गत महाद्वीपीय और महासागरीय प्लेटें विभिन्न दिशाओं में विस्थापित होती रहती है।
https://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9F_%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8
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प्लेट टेक्टोनिक्स थ्योरी का आलोचनात्मक परीक्षण I
यह सिद्धांत मूलतः प्लेटों की गतिशीलता पर आधारित है, जिसका कारण प्लास्टिक दुर्बलमंडल से उत्पन्न होने वाली संवहनिक तापीय ऊर्जा तरंगों को माना जाता है. ....अधिक जानने के लिए, आगे पढ़ें।
https://awaremyindia.in/2018/12/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9F-%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8-%E0%A4%A5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%80/
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प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त I
पृथ्वी पर पाई जाने वाली प्लेटें दुर्बलतामण्डल पर अस्थिर रूप से स्थित है, जिनमें निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त को स्वीकार करने में सबसे बड़ी बाधा यह समझाने की थी कि सियाल के बने महाद्वीप सीमा पर कैसे तैरते हैं तथा उसे विस्थापित करते हैं। 1928 में आर्थर होम्स ने बताया कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में रेडियोधर्मी तत्वों से निकली गर्मी से ऊर्ध्वाधर संवहन धाराएँ उत्पन्न होती हैं। अधोपर्पटी संवहन धाराएँ तापीय संवहन की क्रियाविधि प्रारम्भ करती हैं, जो प्लेटों के संचालन के लिये प्रेरक बल का काम करती हैं। भौतिक भूगोल, भू-आकृति विज्ञान एवं भू-विज्ञान में प्लेट विवर्तनिकी का विचार नवीन है जिसे आधार पर महाद्वीपों व महासागरों की उत्पत्ति, ज्वालामुखी एवं भूकम्प की क्रिया तथा वलित पर्वतों के निर्माण आदि का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण दिया जा सकता है। प्लेट विवर्तनिकी का सिद्धान्त बीसवीं शताब्दी के 60वें दशक में प्रस्तुत किया गया जिसका प्रभाव समस्त भू-विज्ञानों पर पड़ा। इसके आधार पर महाद्वीपों एवं महासागरों के वितरण को भी एक नवीन दिशा मिली। इससे पूर्व 1948 में एविंग नामक वैज्ञानिक ने अटलांटिक महासागर में स्थित अटलांटिक कटक की जानकारी दी। इस कटक के दोनों और की चट्टानों के चुम्बकन के अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों ने उत्तर दक्षिण दिशा में चुम्बकीय पेटियों का स्पष्ट एवं समरूप प्रारूप पाया। इसके आधार पर निष्कर्ष निकाला गया कि मध्य महासागरीय कटक के सहारे नवीन बेसाल्ट परत का निर्माण होता है।सर्वप्रथम हेस ने 1960 में विभिन्न साक्ष्यों द्वारा प्रतिपादित किया कि महाद्वीप तथा महासागर विभिन्न प्लेटों पर टिके हैं। प्लेट विवर्तनिकी की अवधारणा को 1967 में डीपी मेकेन्जी, आरएल पारकर तथा डब्ल्यू जे मॉर्गन आदि विद्वानों ने स्वतंत्र रूप से उपलब्ध विचारों के आधार पर प्रस्तुत किया। यद्यपि इससे पहले टूजो विल्सन ने प्लेट शब्द का प्रयोग किया था, जो व्यवहार में नहीं आ पाया था।पृथ्वी का बाह्य भाग दृढ़ खण्डों से बना है जिसे प्लेट कहा जाता है। प्लेटल विवर्तनिकी लैटिन शब्द (Tectonicus) टेक्टोनिक्स से बना है। प्लेट विवर्तनिकी एक वैज्ञानिक सिद्धान्त है, जो स्थलमण्डल गति को बड़े पैमाने पर वर्णित करता है। यह मॉडल महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त की परिकल्पना पर आधारित है। पृथ्वी का ऊपरी भाग स्थलमण्डल कहलाता है, जो कि तीन परतों में विभाजित है। ऊपरी भूपृष्ठ जिसकी औसत गहराई 25 किलोमीटर है, नीचला भूपृष्ठ जिसकी औसत गहराई 10 किलोमीटर है। ऊपरी मैटल जिसकी औसत गहराई 65 किलोमीटर है। यह भाग कठोर है जिसका औसत घनत्व 2.7 से 3.0 है। इस स्थलमण्डल के ठीक नीचे दुर्बलतामण्डल है जिसकी औसत मोटाई 250 किलोमीटर है। इस मंडल का घनत्व 3.5 से 4.0 तक है। स्थलमण्डल अधिक ठंडा एवं अधिक कठोर है, जबकि गर्म एक कठोर है एवं सरलता से प्रवाह करता है।स्थलमण्डलीय प्लेटों की संख्या के सम्बन्ध में विद्वान एकमत नहीं है। डीट्ज एवं हेराल्ड ने इनकी संख्या 10 बताई। डब्ल्यू जे मॉरगन ने इसकी संख्या 20 बताई। सामान्यतः भूपटल पर सात बड़ी व 14 छोटी प्लेटें हैं, जो दुर्बलतामण्डल पर टिकी हुई हैं, ये प्लेटें तीन प्रकार की हैं, महाद्वीपीय, महासागरीय एवं महाद्वीपीय व महासागरीय।उत्तरी अमेरीकन प्लेटइसका विस्तार उत्तरी अमरीका तथा मध्य अटलांटिक कटक तक अटलांटिक के पश्चिमी भाग पर है। कैरेबियन तथा कोकोस छोटी प्लेटें दक्षिणी अमरीकी प्लेट से पृथक करती है।दक्षिणी अमेरीकन प्लेटयह दक्षिणी अमरीका महाद्वीप तथा दक्षिणी अटलांटिक के पश्चिमी भाग में मध्य अटलांटिक कटक तक विस्तृत है।प्रशान्त महासागरीय प्लेटयह महासागरीय प्लेट है जिसका विस्तार अलास्का क्यूराइल द्वीप समूह से प्रारम्भ होकर दक्षिण में अंटार्कटिक रिज तक सम्पूर्ण प्रशान्त महासागर पर है। इसके किनारों पर फिलीपींस, नजका तथा कोकोस लघु प्लेटें स्थित हैं। यह प्लेट सबसे बड़ी हैं।यूरेशियाई प्लेटयह प्लेट मुख्यरूप से महाद्वीपीय है जिसका विस्तार यूरोप एवं एशिया पर है। इसमें कई छोटी प्लेटें भी संलग्न हैं जैसे पर्शियन प्लेट तथा चीन प्लेट। इसकी दिशा पश्चिम से पूर्व है।इंडो आस्ट्रेलियाई प्लेटयह महाद्वीपीय व महासागरीय दोनों प्रकार की प्लेट हैं। परन्तु इसमें सागरीय क्षेत्र अधिक है। इसका विस्तार भारतीय प्रायद्वीप अरब प्रायद्वीप, आस्ट्रेलिया तथा हिन्द महासागर के अधिकांश भाग पर है। इसकी दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर पूर्व है।अफ्रीकन प्लेटयह समस्त अफ्रीका, दक्षिण अटलांटिक महासागर के पूर्वी भाग तथा हिन्द महासागर के पश्चिमी भाग पर विस्तृत है। इसकी दिशा उत्तर-पूर्व है।अंटार्कटिक प्लेटइसका विस्तार अंटार्कटिक महाद्वीप तथा इसके चारों ओर विस्तृत सागर पर है। यह महाद्वीप व महासागरीय प्लेट है। इन प्लेटों के अतिरिक्त महत्त्वपूर्ण छोटी प्लेटें निम्नलिखित हैं-कोकस प्लेटयह प्लेट मध्यवर्ती अमरीका और प्रशान्त महासागरीय प्लेट के मध्य स्थित है।नजका प्लेटइसका विस्तार दक्षिणी अमरीकी प्लेट तथा प्रशान्त महासागरीय प्लेट के मध्य है।अरेबियन प्लेटइस प्लेट में अधिकतर अरब प्रायद्वीप का भाग सम्मिलित है।फिलीपाइन प्लेटयह प्लेट एशिया महाद्वीप एवं प्रशान्त महासागरीय प्लेट के मध्य स्थित है।कैरोलिन प्लेटयह न्यूगिनी के उत्तर में स्थित है।प्लेटों की सीमाएँप्लेटों में तीन प्रकार की गतियां होती हैं। जिनके आधार पर ये तीन प्रकार की सीमाएँ बनाती हैं, जो निम्नानुसार हैं-अपसारी सीमाएँपृथ्वी के आन्तरिक भाग में संवहन तरंगों की उत्पत्ति के कारण जब दो प्लेटें विपरीत (एक-दूसरे से दूर) दिशा में गतिशील होती हैं तो ये अपसारी किनारों का निर्माण करती हैं। इन सीमाओं के मध्य बनी दरार में भूगर्भ का तरल मैग्मा ऊपर आता है तथा दोनों प्लेटों के मध्य तीन नवीन ठोस तली का निर्माण होता है। इसे रचनात्मक किनारा भी कहा जाता है। इस प्रकार का नवीन तली का निर्माण महासागरीय कटक व बेसिन में पाया जाता है। इसका सर्वोत्तम उदाहरण मध्य अटलांटिक कटक है जहाँ अमरीकी प्लेटें यूरेशियन प्लेट तथा अफ्रीकन प्लेट से अलग हो रही हैं। इन सीमाओं पर ज्वालामुखी क्रिया भी देखने को मिलती है।पृथ्वी पर पाई जाने वाली प्लेटें दुर्बलतामण्डल पर अस्थिर रूप से स्थित है, जिनमें निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त को स्वीकार करने में सबसे बड़ी बाधा यह समझाने की थी कि सियाल के बने महाद्वीप सीमा पर कैसे तैरते हैं तथा उसे विस्थापित करते हैं। 1928 में आर्थर होम्स ने बताया कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में रेडियोधर्मी तत्वों से निकली गर्मी से ऊर्ध्वाधर संवहन धाराएँ उत्पन्न होती हैं। अधोपर्पटी संवहन धाराएँ तापीय संवहन की क्रियाविधि प्रारम्भ करती हैं, जो प्लेटों के संचालन के लिये प्रेरक बल का काम करती हैं। संवहन धाराओं द्वारा ऊष्मा की उत्पत्ति की खोज रमफोर्ड ने 1997 में की थी। भूपटल के नीचे संवहन धाराओं का संकल्पना हॉपकिन्स ने 1849 में प्रस्तावित की थी। उष्ण धाराएँ ऊपर उठकर भूपृष्ठ पर पहुँचकर ठंडी हो जाती हैं, जिससे पुनः नीचे की ओर चलना प्रारम्भ कर देती हैं। इससे प्लेटों में गति होती है।संवहन धाराएँ स्थलमण्डल की प्लेटों को अपने साथ प्रवाहित करती हैं। महासागरीय घटकों में संवहन धाराओं के साथ तरल मैग्मा बाहर आ जाता है। मैटल में लचीलापन आन्तरिक तापमान व दबाव पर निर्भर करता है। संवहन धाराओं के साथ तप्त पिघला हुआ मैग्मा ऊपर उठता है। भूपटल के नीचे संवहन धाराएँ विपरीत दिशा में अपसरित होती हैं जिससे मैग्मा भी दोनों दिशाओं में फैल जाता है और ठंडा होने लगता है। जहाँ दो विपरीत दिशाओं से संवहन धाराएँ मिलती हैं वहाँ ये मुड़कर पुनः केन्द्र की ओर चल पड़ती हैं। अतः ठंडा मैग्मा भी नीचे धँसता है एवं गर्म होने लगता है। जैसे-जैसे यह केन्द्र की और बढ़ता है, उसके आयतन में विस्तार होता है।जहाँ संवहन तरंगे विपरीत दिशा में अपसरित होती हैं, वहाँ भूपृष्ठ पर प्लेटें एक दूसरे से दूर खिसकती हैं तथा जहाँ संवहन तरंगे मिलकर पुनः केन्द्र की तरफ संचालित होती हैं। उस स्थान पर प्लेटें एक-दूसरे के समीप आती हैं।प्लेटें एक दूसरे के सापेक्ष में निरन्तर गतिशील रहती हैं। जब एक प्लेट गतिशील होती है तो दूसरी का गतिशील होना स्वाभाविक होता है। प्लेटों का घूर्णन यूलर के ज्यामितीय सिद्धान्त के आधार पर गोले की सतह पर किसी प्लेट की गति एक सामान्य घूर्णन के रूप में होती है, जो एक घूर्णन अक्ष के सहारे सम्पादित होता है।प्लेट के रचनात्मक एवं बिना किसी किनारे के सापेक्षिक संचलन का वेग उसके अक्ष के सहारे कोणिक वेग तथा घूर्णन अक्ष से प्लेट किनारे के बिन्दु की कोणिक दूरी के समानुपातिक होता है। घूर्णन अक्ष गोले के केन्द्र से होकर गुजरती है। जब प्लेट गतिमान होती है तो उसके सभी भाग घूर्णन अक्ष के सहारे लघु चक्रीय मार्ग के सहारे गतिशील होते हैं। प्लेटों की गति व दिशा का अध्ययन उपग्रहों पर स्थापित लेसर परावर्तकों के माध्यम से किया जाता है।महाद्वीप विस्थापनप्लेट विर्वतनिकी सिद्धान्त के आधार पर महाद्वीपीय विस्थापन का कारण स्पष्ट हो जाता है। वेलेन्टाइन तथा मूर्स एवं हालम ने 1973 में इस तथ्य को प्लेटों की गति को सागरीय तली के प्रसार तथा पुराचुम्बकत्व के प्रमाणों के आधार पर प्रमाणित किया है।पुराचुम्बकीय सर्वेक्षण के आधार पर महासागरों के खुलने एवं बन्द होने के प्रमाण मिले हैं। भूमध्यसागर वृहद महासागर का अवशिष्ट भाग है। इसका सकुंचन का कारण अफ्रीकन प्लेट के उत्तर की ओर सरकना है। वर्तमान में लाल सागर का भी विस्तार हो रहा है। स्थलीय या महासागरीय प्लेट एक-दूसरे के सापेक्ष में गतिमान हैं। हिमालय की भी ऊँचाई बढ़ी है।पर्वत निर्माणप्लेट विर्वर्तनिकी सिद्धान्त के आधार पर भूपृष्ठ पर पाये जाने वाले विशाल वलित (मोड़दार) पर्वतों का निर्माण हुआ। प्लेटों के विस्थापन से संकुचलन एवं टकराहट के कारण विनाशकारी किनारे पर निक्षेपित अवसादों में मोड़ पड़ने से वलित पर्वतों का निर्माण हुआ। प्रशान्त प्लेट से अमरीकन प्लेट के विनाशात्मक किनारे क्रस्ट के नीचे दबने से सम्पीडनात्मक बल का जन्म हुआ व उत्तरी तथा दक्षिणी किनारे के पदार्थ वलित हो गए एवं एंडीज तथा रॉकी पर्वतों का निर्माण हुआ।भारतीय प्लेट एवं यूरेशियन प्लेट के एक-दूसरे की ओर अग्रसर होने से अंगारालैंड व गोंडवानालैंड के मध्य स्थित टैथिस सागर में निक्षेपित अवसाद वलित हो गए। इससे हिमालय जैसे विशाल वलित पर्वतों का निर्माण हुआ।यूरोप व अफ्रीका प्लेट के टकराने से आल्पस पर्वतों का निर्माण हुआ। इस विस्थापन से भारतीय प्लेट एशिया प्लेट के नीचे दब गई जिसके भूगर्भ में पिघलने से हिमालय का उत्थान हुआ।ज्वालामुखीप्लेट विवर्तनिकी ज्वालामुखी की उत्पत्ति तथा वितरण पर भी पूर्ण वैज्ञानिक व्याख्या करती है। जहाँ दो प्लेटें एक-दूसरे से दूर जाती हैं, वहाँ दबाव कम होने से दरारों से लावा प्रवाह होने लगता है। इसी प्रकार सागर तली में कटक का निर्माण होता है व नवीन बेसाल्ट तली का निर्माण निरन्तर होता रहता है। जहाँ प्लेट के दो किनारे मिलते हैं, वहाँ उठती हुई संवहन धाराओं के कारण ज्वालामुखी विस्फोट हो जाता है। जब प्लेट के विनाशात्मक किनारे टकराते हैं तब भी प्लेट के दबने से व मैटल के पिघलने से निकटवर्ती क्षेत्र में दबाव बढ़ जाता है और ज्वालामुखी विस्फोट हो जाता है। विश्व के सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखी प्लेट सीमाओं के सहारे ही पाये जाते हैं। इसमें प्रशान्त प्लेट के अग्नि वृत्त पर सर्वाधिक है। इन्हीं क्षेत्रों में भूकम्प के झटके भी महसूस किये जाते हैं। संरक्षी किनारों पर तीव्र भूकम्प आते हैं।उपर्युक्त प्रभावों के साथ-साथ पृथ्वी पर कार्बोनीफरस युग के हिमावरण एवं जलवायु परिवर्तन को भी सिद्धान्त द्वारा आसानी से समझा जा सकता है। अंटार्कटिक में कोयला भण्डारों का पाया जाना वहाँ के जलवायु परिवर्तनों को प्रमाणित करता है। प्लेट विवर्तनिकी के आधार से हिन्द महासागर का अस्तित्व क्रिटेशय युग से पहले नहीं था। दक्षिणी पेंजिया में अंटार्कटिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया तथा भारत आदि सम्मिलित थे। इस युग के अन्तिम चरण में भारतीय प्लेट उत्तर की ओर सरकी जिससे आस्ट्रेलिया एवं अंटार्कटिक अफ्रीका से अलग होने लगे। इयोसीन युग में आस्ट्रेलिया अंटार्कटिका से अलग हुआ तथा इसका प्रवाह दक्षिण की ओर हुआ। अतः यहाँ ठंडी जलवायु पाई जाती है।
https://hindi.indiawaterportal.org/Theories-of-Tactonic-Plate
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भूगर्भिक क्रियाओं की व्याख्या ,प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत द्वारा I
प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत को भूभौतिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी सिद्धांत माना गया. 1960 के दशक में विकसित इस सिद्धांत ने सर्वाधिक वैज्ञानिक आधारों पर प्रायः सभी भूगर्भिक क्रियाओं की व्याख्या का प्रयास किया. I
https://awaremyindia.in/2018/12/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9F-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A4/
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कितने विवर्तनिक प्लेटों हैं I
इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की ऊपरी परत के रूप में स्थित स्थलमण्डल, जिसमें क्रस्ट और ऊपरी मैंटल का कुछ हिस्सा शामिल है, कई टुकड़ों में विभाजित है जिन्हें प्लेट कहा जाता है।
https://www.gkexams.com/ask/18626-Kitne-Vivartanik-Platon-Hain-Wahan
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महाद्वीपीय विस्थापन - विकिपीडिया
महाद्वीपीय विस्थापन पृथ्वी के महाद्वीपों के एक-दूसरे के सम्बन्ध में हिलने को कहते हैं। यदि करोड़ों वर्षों के भौगोलिक युगों में देखा जाए तो प्रतीत होता है कि महाद्वीप और उनके अंश समुद्र के फ़र्श पर टिके हुए हैं I
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टेक्टोनिक प्लेट क्या हैं? - Quora
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत प्लेटों के स्वभाव एवं प्रवाह से सम्बन्धित अध्ययन है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन 1960 के दशक में किया गया। हैरी हेस, विल्सन, माॅर्गन, मैकेन्जी तथा पार्कर आदि विद्वानों ने इस ...
https://hi.quora.com/%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9F-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82
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क्यों आते हैं भूकंप, क्या है इसके पीछे के कारण ?
तीव्रता इतनी तेज थी कि नेपाल की आधा आबादी को इससे नुकसान हुआ। कईं जानें गईं, तो कई बिल्डिंग जमीदोज हो गईं।
https://money.bhaskar.com/news/MON-PERS-PFPR-reasons-behind-earthquake-happens-latest-news-4990764-PHO.html
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पृथ्वी की धरातलीय संरचनाये I
पर्वत धरातल के ऐसे ऊपर उठे भागों के रूप में जाने जाते हैं, जिनका ढाल तीव्र होता है और शिखर भाग संंकुचित क्षेत्र वाला होता है। पर्वतों का निम्नलिखित चार भागों में वर्गीकरण किया जाता है I
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